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झरने की आवाज़ | Jharne Ki Aawaaz

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विनोद कुमार शक्ल की कविता 'जलप्रपात है समीप' हमें एक झरने के पास ला कर खड़ा कर देती है। वो हमें मजबूर करती है के हम उसकी आवाज़ को गौर से सुनें - और उस एक आवाज़ में छुपी कई छोटी-छोटी आवाजों को पहचानें। ताकि हम भी कवि की तरह उनके साथ सुर में सुर मिला कर, प्रकृति के संगीत में शामिल हो सकें। In his poem 'Jalprapaat Hai Sameep', Vinod Kumar Shukla brings us close to a waterfall. He compels us to listen carefully - so that we may be able to recognize all the little voices that make up the sound of the waterfall. He does this so that like him, we too can join in and become a part of nature's song. कविता / Poem – जलप्रपात है समीप | Jalprapaat Hai Sameep कवि / Poet – विनोद कुमार शुक्ल | Vinod Kumar Shukl पुस्तक / Book - प्रतिनिधि कविताएँ (विनोद कुमार शुक्ल) संस्करण / Publisher - राजकमल प्रकाशन (2016) Scripted and Hosted by Kartikay Khetarpal Produced by Nithin Shamsudhin Logo and Graphics Design by Abhishek Verma A Nayi Dhara Radio Production
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