स्वकथा - "रसीदी टिकट" -- भाग 11 ( "Rasidi Ticket" Amrita pritam's biography part- 11)
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एक सपना और था जिसने मेरी उठती जवानी को अपने धागों में लपेट लिया था। हर तीसरी या चौथी रात देखती थी कोइ दो मंज़िला मकान है, वो बिलकुल अकेला ,आसपास कोइ बस्ती नहीं ,चारो ओर जंगल है और जहाँ वो मकान है उसके एक तरफ नदी बहती है...... नदी की ओर उस मकान की दूसरी मंज़िल की एक खिड़की खुलती है। जहाँ कोई खड़ा खिड़की से बाहर जंगल के पेड़ों व नदी को देख रहा है। मुझे सिर्फ़ उसकी पीठ दिखाई देती थी ,और सिर्फ इतना ... की गर्म चादर उसके कन्धों से लिपटी होती थी ...
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