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सूर्य नमस्कार सूर्य से शक्ति प्राप्त करने की विधि स्वामी सत्यानन्द सरस्वती योग के क्षेत्र में सूर्य नमस्कार एक जीवनशक्ति प्रदायक अभ्यास के रूप में विख्यात है । इसके अभ्यास के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य , शक्ति तथा क्रियाशीलता में वृद्धि होती है । साथ - ही - साथ आध्यात्मिक प्रगति भी होती है । इसका मिला - जुला परिणाम चेतना के विकास के रूप में परिलक्षित होता है । अब लोग मात्र कर्मकाण्डों तक ही सीमित नहीं हैं । वे अपने आंतरिक व्यक्तित्व की गहराइयों में झाँकने के लिए भी योग को अपना रहे हैं । यद्यपि शारीरिक , मानसिक तथा भावनात्मक विकास के महत्त्व को समझा जाने लगा है , परन्तु अत्यधिक व्यस्तता के कारण लोगों के लिए नियमित रूप से योगाभ्यास कर पाना सम्भव नहीं हो पाता , लेकिन बिना अभ्यास के तो लाभ संभव नहीं है । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है , जो व्यस्त लोगों के लिए एक संक्षिप्त , परन्तु पूर्ण अभ्यास- सूर्य नमस्कार के विषय में पूर्ण जानकारी देती है । सूर्य नमस्कार अपने आप में एक पूर्ण साधना है जिसमें आसन , प्राणायाम तथा ध्यान की क्रियाएँ सम्मिलित हैं । आधुनिक उलझनपूर्ण जीवन - पद्धति में मानसिक तनाव , चिन्तायें तथा अनेक समस्यायें व्यक्तिगत संबंध , आर्थिक विषमता तथा युद्ध और विनाश के भय के कारण नित्य उत्पन्न होती रहती हैं । साथ - ही - साथ स्वचालित यंत्रों के उपयोग तथा औद्योगिक विकास के कारण मानव शारीरिक श्रम से भी क्रमश : दूर हो गया है । शारीरिक तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने वालों की संख्या बढ़ रही है । बिना किसी प्रभावी कदम के इस पर नियंत्रण पाना सम्भव नहीं है । योगाभ्यास तनावों को दूर करने तथा शारीरिक व मानसिक रोगों के उपचार के लिए एक प्रभावी पद्धति है । योगमय जीवन प्रारम्भ करने के उद्देश्य से सूर्य नमस्कार एक सम्पूर्ण अभ्यास है और इसके लिये मात्र 5 से 15 मिनट तक का नियमित समय देकर इससे प्राप्त होने वाले आश्चर्यजनक लाभों का अनुभव किया जा सकता है । इसलिये अत्यंत व्यस्त व्यक्तियों , यथा - व्यवसायियों , गृहणियों , परीक्षा में व्यस्त विद्यार्थियों अथवा प्रयोगशाला में व्यस्त रहने वाले वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक आदर्श एवं उपयुक्त अभ्यास है । यह पुस्तक उन सभी जिज्ञासुओं के लिए है , जिनकी रुचि आत्म - विकास में है । यह स्मरण रखें कि पुस्तक मात्र निर्देशन कर सकती है । हमारा मुख्य उद्देश्य यह है कि पाठक सूर्य नमस्कार को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर इससे होने वाले लाभों को अनुभव कर सकें । सम्भवतया आप पहले से ही जानते हैं कि सूर्य नमस्कार से शरीर तथा मन सशक्त होता है तथा रोगों से मुक्ति मिलती है । परन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है । इस सत्यता को परखने के लिए आप स्वयं इसका अभ्यास कीजिये । अनेक आसनों , प्राणायामों , चक्र जागरण तथा मंत्रोच्चारण से युक्त इस अभ्यास में इतनी पूर्णता है कि शायद ही अन्य कोई अभ्यास इसके समकक्ष रखा जा सके । सूर्य नमस्कार मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है । नि : संदेह इसमें शरीर के बारी - बारी से आगे तथा पीछे की ओर मुड़ने के कारण समस्त अंगों तथा मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है , उनकी मालिश होती है तथा उनमें सामंजस्य आता है । आध्यात्मिक साधना के रूप में यह एक महत्त्वपूर्ण अभ्यास है । सूर्य नमस्कार वैदिक काल से मनीषियों की देन है । सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ है- सूर्य को नमस्कार । प्राचीन काल में दैनिक कर्मकाण्ड के रूप में सूर्य की नित्य आराधना की जाती थी , क्योंकि यह आध्यात्मिक चेतना का एक शक्तिशाली प्रतीक है । बाह्य तथा आंतरिक सूर्य उपासना सामाजिक , धार्मिक कर्मकाण्ड के रूप में की जाती थी । ताकि प्रकृति की उन शक्तियों को अनुकूल बनाया जा सके जो मनुष्य के नियंत्रण की सीमा से बाहर हैं । यह पद्धति उन आत्मज्ञानियों द्वारा विकसित की गयी है , जिन्हें यह पता था कि इसके अभ्यास से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा सामाजिक रचनात्मकता और उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं । । सूर्य नमस्कार तीन तत्त्वों से संयुक्त है- रूप , ऊर्जा तथा लयबद्धता । बारह शारीरिक स्थितियों के भौतिक साँचे में ढली हुई पद्धति से प्राणों ( सूक्ष्म ऊर्जा जो सूक्ष्म शरीर को क्रियाशील बनाती है ) की उत्पत्ति होती है । इन स्थितियों का अभ्यास लयबद्ध ढंग से करने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आवर्तन प्रभावित होते हैं , यथा - दिवस के चौबीस घण्टे , वर्ष के बारह राशि चक्र तथा मानव शरीर के जैव लय । हमारे शरीर तथा मन पर पड़ने वाले इन स्थितियों सूक्ष्म ऊर्जा के प्रभाव के फलस्वरूप जीवन की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है तथा चारों ओर की दुनिया के प्रति हमारी प्रतिक्रिया सकारात्मक बनती है । इसे स्वयं अनुभव करके देखिये ।
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सूर्य नमस्कार सूर्य से शक्ति प्राप्त करने की विधि स्वामी सत्यानन्द सरस्वती योग के क्षेत्र में सूर्य नमस्कार एक जीवनशक्ति प्रदायक अभ्यास के रूप में विख्यात है । इसके अभ्यास के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य , शक्ति तथा क्रियाशीलता में वृद्धि होती है । साथ - ही - साथ आध्यात्मिक प्रगति भी होती है । इसका मिला - जुला परिणाम चेतना के विकास के रूप में परिलक्षित होता है । अब लोग मात्र कर्मकाण्डों तक ही सीमित नहीं हैं । वे अपने आंतरिक व्यक्तित्व की गहराइयों में झाँकने के लिए भी योग को अपना रहे हैं । यद्यपि शारीरिक , मानसिक तथा भावनात्मक विकास के महत्त्व को समझा जाने लगा है , परन्तु अत्यधिक व्यस्तता के कारण लोगों के लिए नियमित रूप से योगाभ्यास कर पाना सम्भव नहीं हो पाता , लेकिन बिना अभ्यास के तो लाभ संभव नहीं है । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है , जो व्यस्त लोगों के लिए एक संक्षिप्त , परन्तु पूर्ण अभ्यास- सूर्य नमस्कार के विषय में पूर्ण जानकारी देती है । सूर्य नमस्कार अपने आप में एक पूर्ण साधना है जिसमें आसन , प्राणायाम तथा ध्यान की क्रियाएँ सम्मिलित हैं । आधुनिक उलझनपूर्ण जीवन - पद्धति में मानसिक तनाव , चिन्तायें तथा अनेक समस्यायें व्यक्तिगत संबंध , आर्थिक विषमता तथा युद्ध और विनाश के भय के कारण नित्य उत्पन्न होती रहती हैं । साथ - ही - साथ स्वचालित यंत्रों के उपयोग तथा औद्योगिक विकास के कारण मानव शारीरिक श्रम से भी क्रमश : दूर हो गया है । शारीरिक तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने वालों की संख्या बढ़ रही है । बिना किसी प्रभावी कदम के इस पर नियंत्रण पाना सम्भव नहीं है । योगाभ्यास तनावों को दूर करने तथा शारीरिक व मानसिक रोगों के उपचार के लिए एक प्रभावी पद्धति है । योगमय जीवन प्रारम्भ करने के उद्देश्य से सूर्य नमस्कार एक सम्पूर्ण अभ्यास है और इसके लिये मात्र 5 से 15 मिनट तक का नियमित समय देकर इससे प्राप्त होने वाले आश्चर्यजनक लाभों का अनुभव किया जा सकता है । इसलिये अत्यंत व्यस्त व्यक्तियों , यथा - व्यवसायियों , गृहणियों , परीक्षा में व्यस्त विद्यार्थियों अथवा प्रयोगशाला में व्यस्त रहने वाले वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक आदर्श एवं उपयुक्त अभ्यास है । यह पुस्तक उन सभी जिज्ञासुओं के लिए है , जिनकी रुचि आत्म - विकास में है । यह स्मरण रखें कि पुस्तक मात्र निर्देशन कर सकती है । हमारा मुख्य उद्देश्य यह है कि पाठक सूर्य नमस्कार को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर इससे होने वाले लाभों को अनुभव कर सकें । सम्भवतया आप पहले से ही जानते हैं कि सूर्य नमस्कार से शरीर तथा मन सशक्त होता है तथा रोगों से मुक्ति मिलती है । परन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है । इस सत्यता को परखने के लिए आप स्वयं इसका अभ्यास कीजिये । अनेक आसनों , प्राणायामों , चक्र जागरण तथा मंत्रोच्चारण से युक्त इस अभ्यास में इतनी पूर्णता है कि शायद ही अन्य कोई अभ्यास इसके समकक्ष रखा जा सके । सूर्य नमस्कार मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है । नि : संदेह इसमें शरीर के बारी - बारी से आगे तथा पीछे की ओर मुड़ने के कारण समस्त अंगों तथा मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है , उनकी मालिश होती है तथा उनमें सामंजस्य आता है । आध्यात्मिक साधना के रूप में यह एक महत्त्वपूर्ण अभ्यास है । सूर्य नमस्कार वैदिक काल से मनीषियों की देन है । सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ है- सूर्य को नमस्कार । प्राचीन काल में दैनिक कर्मकाण्ड के रूप में सूर्य की नित्य आराधना की जाती थी , क्योंकि यह आध्यात्मिक चेतना का एक शक्तिशाली प्रतीक है । बाह्य तथा आंतरिक सूर्य उपासना सामाजिक , धार्मिक कर्मकाण्ड के रूप में की जाती थी । ताकि प्रकृति की उन शक्तियों को अनुकूल बनाया जा सके जो मनुष्य के नियंत्रण की सीमा से बाहर हैं । यह पद्धति उन आत्मज्ञानियों द्वारा विकसित की गयी है , जिन्हें यह पता था कि इसके अभ्यास से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा सामाजिक रचनात्मकता और उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं । । सूर्य नमस्कार तीन तत्त्वों से संयुक्त है- रूप , ऊर्जा तथा लयबद्धता । बारह शारीरिक स्थितियों के भौतिक साँचे में ढली हुई पद्धति से प्राणों ( सूक्ष्म ऊर्जा जो सूक्ष्म शरीर को क्रियाशील बनाती है ) की उत्पत्ति होती है । इन स्थितियों का अभ्यास लयबद्ध ढंग से करने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के आवर्तन प्रभावित होते हैं , यथा - दिवस के चौबीस घण्टे , वर्ष के बारह राशि चक्र तथा मानव शरीर के जैव लय । हमारे शरीर तथा मन पर पड़ने वाले इन स्थितियों सूक्ष्म ऊर्जा के प्रभाव के फलस्वरूप जीवन की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है तथा चारों ओर की दुनिया के प्रति हमारी प्रतिक्रिया सकारात्मक बनती है । इसे स्वयं अनुभव करके देखिये ।
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