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मेरी यह कविता "प्रतिशोध" पुलवामा के वीर बलिदानियों और भारतीय वायु सेना के पराक्रमी योद्धाओं को समर्पित है चलो फिर याद करते हैं कहानी उन जवानों की। बने आँसू के दरिया जो, लहू के उन निशानों की॥ .. .. .. नमन चालीस वीरों को, यही संकल्प अपना है। बचे कोई न आतंकी, यही हम सब का सपना है॥ The full Poem is available for your listening. You can write to me on HindiPoemsByVivek@gmail.com
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मेरी यह कविता "प्रतिशोध" पुलवामा के वीर बलिदानियों और भारतीय वायु सेना के पराक्रमी योद्धाओं को समर्पित है चलो फिर याद करते हैं कहानी उन जवानों की। बने आँसू के दरिया जो, लहू के उन निशानों की॥ .. .. .. नमन चालीस वीरों को, यही संकल्प अपना है। बचे कोई न आतंकी, यही हम सब का सपना है॥ The full Poem is available for your listening. You can write to me on HindiPoemsByVivek@gmail.com
पवित्र पुण्य भारती (पञ्चचामर छंद) भले अनेक धर्म हों, परन्तु एक धाम है। पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥ समान सर्व प्राण हैं, विधान संविधान है। महान लोकतंत्र है, स्वतंत्रता महान है। तिरंग हाथ में उठा, कि आन बान शान है। कि कोटि कंठ गूंजता, सुभाष राष्ट्र गान है। ललाट गर्व से उठा, न शीश ये कभी झुका। सदैव साथ देश का, स्वदेश भक्ति काम है॥ पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥ अनेक पुष्प हैं लगे, परन्तु एक हार है। अनेक ग्रन्थ हैं यहाँ, हितोपदेश सार है। अनेक हाथ जो मिले, प्रचंड मुष्टि वार है। समक्ष शत्रु जो मिले, लहू सनी कटार है। अदम्य वीर साहसी, सपूत मात के वही। कि काट शीश जो धरे, वही रहीम राम है॥ पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥ दिपावली कि ईद हो, नमाज़ हो कि आरती। विभिन्न पंथ पर्व से, वसुंधरा सँवारती। अनेक भिन्न बोलियाँ, सुपुत्र को पुकारती। निनाद नृत्य गान से, प्रसन्न भव्य भारती। नई उड़ान है यहाँ, नया यहाँ प्रभात है। ममत्व मातृ अंक में, मिला मुझे विराम है॥ पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥ स्वरचित विवेक अग्रवाल 'अवि' You can write to me on HindiPoemsByVivek@Gmail.com…
कथा सुनो सुभाष की, अदम्य स्वाभिमान की। अज़ाद हिन्द फ़ौज के, पराक्रमी जवान की॥ अनन्य राष्ट्र प्रेम की, अतुल्य शौर्य त्याग की। सहस्त्र लक्ष वक्ष में, प्रचंड दग्ध आग की॥ सशस्त्र युद्ध राह पे, सदैव वो रहा डटा। समस्त विश्व साक्ष्य है, नहीं डरा नहीं हटा॥ असंख्य शत्रु देख के, गिरा न स्वेद भाल से। अभीष्ट लक्ष्य के लिए, लड़ा कराल काल से॥ अतीव कष्ट मार्ग में, सुपुत्र वो नहीं रुका। न लोभ मोह में फँसा, न शीश भी कभी झुका॥ स्वतंत्र राष्ट्र स्वप्न को, समस्त देश को दिखा। कटार धार रक्त से, नवीन भाग्य भी लिखा॥ अभूतपूर्व शौर्य का, वृत्तांत विश्व ये कहे। सुकीर्ति सपूत की, सुगंध सी बनी रहे॥ समान सूर्य चंद्र के, अमर्त्य दीप्त नाम है। सुभाष चंद्र बोस को, प्रणाम है प्रणाम है॥ _____________________ Lyrics - Vivek Agarwal Avi Music & Vocal - SunoAI…
श्री राम नवमी - (हरिगीतिका छंद) श्री राम नवमी पर्व पावन, राम मंदिर में मना। संसार पूरा राममय है, राम से सब कुछ बना॥ संतों महंतों की हुई है, सत्य सार्थक साधना। स्त्री-पुरुष बच्चे-बड़े सब, मिल करें आराधना॥ नीरज नयन कोदंड कर शर, सूर्य का टीका लगा। मस्तक मुकुट स्वर्णिम सुशोभित, भाग्य भारत का जगा॥ आदर्श का आधार हो तुम, धैर्य का तुम श्रोत हो। चिर काल तक जलती रहेगी, धर्म की वह ज्योत हो॥ तन मन वचन सब कुछ समर्पित, जाप हर पल नाम का। अब राम ही अपना सहारा, आसरा बस राम का॥ श्रद्धा सहित समर्पित सुर - डॉ सुभाष रस्तोगी गीतकार - विवेक अग्रवाल "अवि" मूल संगीत - उषा मंगेशकर संयोजन - अमोल माटेगांवकर Write to us on HindiPoemsByVivek@Gmail.com…
समापन है शिशिर का अब, मधुर मधुमास आया है। सभी आनंद में डूबे, अपरिमित हर्ष छाया है॥ सुनहरे सूत को लेकर, बुना किरणों ने जो कम्बल। ठिठुरते चाँद तारों को, दिवाकर ने उढ़ाया है॥ ... ... समर्पित काव्य चरणों में, बनाई छंद की माला। नमन है वागदेवी को, सुमन ‘अवि’ ने चढ़ाया है॥ गीतकार - विवेक अग्रवाल "अवि" स्वर - श्रेय तिवारी --------------- Full Ghazal is available for listening You can write to me on HindiPoemsByVivek@Gmail.com…
बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने जुदाई को हमदम बनाया है हमने तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया तभी तो न आँसू भी हमने बहाए तेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन 'अक़ीदत से तुझको इबादत बनाकर लबों पर ग़ज़ल सा सजाया है हमने.. बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने सबब आशिक़ी का भला क्या बतायें ये दिल की लगी है तो बस दिल ही जाने न सोचा न समझा मोहब्बत से पहले सुकूं चैन अपना मेरी जान सब कुछ तेरी जुस्तुजू में गँवाया है हमने बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने जुदाई को हमदम बनाया है हमने Lyrics - Vivek Agarwal "Avi" Guitar & Vocal - Randhir Singh You can write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com…
मेरी यह कविता "प्रतिशोध" पुलवामा के वीर बलिदानियों और भारतीय वायु सेना के पराक्रमी योद्धाओं को समर्पित है चलो फिर याद करते हैं कहानी उन जवानों की। बने आँसू के दरिया जो, लहू के उन निशानों की॥ .. .. .. नमन चालीस वीरों को, यही संकल्प अपना है। बचे कोई न आतंकी, यही हम सब का सपना है॥ The full Poem is available for your listening. You can write to me on HindiPoemsByVivek@gmail.com…
बड़ी ख़ूबसूरत शिकायत है तुझको कि ख़्वाबों में अक्सर बुलाया है हम ने बड़ी आरज़ू थी हमें वस्ल की पर जुदाई को हमदम बनाया है हमने तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया तभी तो न आँसू भी हमने बहाए तेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन 'अक़ीदत से तुझको इबादत बनाकर लबों पर ग़ज़ल सा सजाया है हमने भुलाना तो चाहा भुला हम न पाए तेरी याद हर पल सताती है हमको नहीं आज कल की है तुझसे मोहब्बत बड़ी मुद्दतों से बड़ी शिद्दतों से बड़ा टूट कर दिल लगाया है हम ने सबब आशिक़ी का भला क्या बतायें ये दिल की लगी है तो बस दिल ही जाने न सोचा न समझा मोहब्बत से पहले सुकूं चैन अपना मेरी जान सब कुछ तेरी जुस्तुजू में गँवाया है हमने Lyrics - Vivek Agarwal Music and Vocals - Ranu Jain Write to us at HindiPoemsByVivek@gmail.com…
किताबें छोड़ फोनों को, नया रहबर बनाया है। तिलिस्मी जाल में फँस कर सभी कुछ तो भुलाया है। उसी के साथ गुजरे दिन, उसी के साथ सोना है। समंदर वर्चुअल चाहे, असल जीवन डुबोना है। ट्विटर टिकटौक गूगल हों, या फिर हो फेसबुक टिंडर। हैं उपयोगी सभी लेकिन, अगर लत हो बुरा चक्कर। भुला नज़दीक के रिश्ते, कहीं ढूँढे हैं सपनों को। इमोजी भेज गैरों को, करें इग्नोर अपनों को। ये मेटावर्स की दुनिया, हज़ारों रंग भरती है। भले नकली चमक लेकिन, बड़ी असली सी लगती है। न खाते वक़्त पर खाना, न सोते हैं समय से अब। नहीं अच्छी रहे सेहत, पड़े बिस्तर पे रहते जब। हमारे देश का फ्यूचर, ज़रा सोचो तो क्या होगा। युवा अपना जो तन-मन से, अगर मज़बूत ना होगा। कभी सच्ची कभी झूठी, ख़बर तेजी से बढ़ती हैं। बिना सर पैर अफ़वाहें, करोड़ों घर पहुँचती हैं। बिना जाँचे बिना परखे, यकीं हर चीज पर मत कर। बँटे है ज्ञान अधकचरा, ये कूड़ा मत मग़ज़ में भर। समझ ले बात अच्छे से, किताबें काम आएँगी। दिमागों में भरा सारा, जहर बाहर निकालेंगी। You can write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com…
तुम को देखा तो ये ख़याल आया। प्यार पाकर तेरा है रब पाया। झील जैसी तेरी ये आँखें हैं। रात-रानी सी महकी साँसें हैं। झाँकती हो हटा के जब चिलमन, जाम जैसे ज़रा सा छलकाया। तुम को देखा …… देखने दे मुझे नज़र भर के। जी रहा हूँ अभी मैं मर मर के। इस कड़ी धूप में मुझे दे दे, बादलों जैसी ज़ुल्फ़ की छाया। तुम को देखा …… ज़िंदगी भर थी आरज़ू तेरी। तू ही चाहत तू ज़िंदगी मेरी। पास आकर भी दूर क्यूँ बैठे, चाँद सा चेहरा क्यूँ है शरमाया। तुम को देखा …… तुम को देखा तो ये ख़याल आया। प्यार पाकर तेरा है रब पाया। You can write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com…
एक किताब सा मैं जिसमें तू कविता सी समाई है, कुछ ऐसे ज्यूँ जिस्म में रुह रहा करती है। मेरी जीस्त के पन्ने पन्ने में तेरी ही रानाई है, कुछ ऐसे ज्यूँ रगों में ख़ून की धारा बहा करती है। एक मर्तबा पहले भी तूने थी ये किताब सजाई, लिखकर अपनी उल्फत की खूबसूरत नज़्म। नीश-ए-फ़िराक़ से घायल हुआ मेरा जिस्मोजां, तेरे तग़ाफ़ुल से जब उजड़ी थी ज़िंदगी की बज़्म। सूखी नहीं है अभी सुर्ख़ स्याही से लिखी ये इबारतें, कहीं फ़िर से मौसम-ए-बाराँ में धुल के बह ना जायें। ए'तिमाद-ए-हम-क़दमी की छतरी को थामे रखना, शक-ओ-शुबह के छींटे तक इस बार पड़ ना पायें। Write to me at HindiPoemsByVivek@Gmail.com…
ये आज़ादी मिले हमको हुए हैं साल पचहत्तर। बड़ा अच्छा ये अवसर है जरा सोचें सभी मिलकर। सही है क्या गलत है क्या मुनासिब क्या है वाजिब क्या। आज़ादी का सही मतलब चलो समझें ज़रा बेहतर। Full Poem is available for listening You may write to me at HindiPoemsByVivek@Gmail.com
न सुकून है न ही चैन है; न ही नींद है न आराम है। मेरी सुब्ह भी है थकी हुई; मेरी कसमसाती सी शाम है। न ही मंज़िलें हैं निगाह में; न मक़ाम पड़ते हैं राह में, ये कदम तो मेरे ही बढ़ रहे; कहीं और मेरी लगाम है। कि बड़ी बुरी है वो नौकरी; जो ख़ुदी को ख़ुद से ही छीन ले, यहाँ पिस रहा है वो आदमी; जो बना किसी का ग़ुलाम है। --- --- शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि' आवाज़ - नरेश नरूला…
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया साहिर उस दौर के शायर थे जब शायरी ग़म-ए-जानाँ तक न सिमट ग़म-ए-दौराँ की बात करने लगी थी। इस ग़ज़ल का मतला भी ऐसा ही है जो न सिर्फ खुद के गम पर हालात के गम का ज़किर भी करता है। आज इसी ग़ज़ल में कुछ और अशआर जोड़ने की हिमाकत की है। मुलाइज़ा फरमाइयेगा।…
तू आग थी मैं आब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। तू ज़िन्दगी मैं ख़्वाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। उधर भी आग थी लगी इधर भी जोश था चढ़ा, नया नया शबाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। जो सुर्ख़ प्यार का निशाँ तिरी निगाह में रोज था, मिरे लिये गुलाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। ख़मोश लब तिरे रहे हमेशा उस सवाल पर, वही तिरा जवाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। ख़ुशी व ग़म का बाँटना मिरे लिए वो प्यार था, तिरे लिए हिसाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। दिलों में गाँठ क्यूँ पड़ी ये आज तक नहीं पता, वो वक़्त ही ख़राब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। अलग अलग है रास्ता अलग अलग हैं मंज़िलें, कोई न हम-रिकाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत। शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि' सुर और संगीत - रणधीर सिंह…
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