धरती के इस हिस्से में | Dharti Ke Is Hisse Mein
MP3•منزل الحلقة
Manage episode 321045143 series 2910886
المحتوى المقدم من Nayi Dhara Radio. يتم تحميل جميع محتويات البودكاست بما في ذلك الحلقات والرسومات وأوصاف البودكاست وتقديمها مباشرة بواسطة Nayi Dhara Radio أو شريك منصة البودكاست الخاص بهم. إذا كنت تعتقد أن شخصًا ما يستخدم عملك المحمي بحقوق الطبع والنشر دون إذنك، فيمكنك اتباع العملية الموضحة هنا https://ar.player.fm/legal.
राजेश जोशी की कविता 'धरती के इस हिस्से में', एक समुद्र तट का चित्रण करती है - जहाँ चिड़ियों, लहरों, मछलियों और पेड़ों की कई आवाजों के बीच भी एक गहरा एकांत है। साथ ही यह कविता हमसे यह भी पूछती नज़र आती है, कि आखिर यह एकांत अब हमारे लिए इतना दुर्लभ क्यों हो गया है? Rajesh Joshi's poem 'Dharti Ke Is Hisse Mein' depicts a seashore - where amidst the sounds of birds, waves, fish, and trees, there is also a deep quietude. The poem also asks us as to why this quietude has become so rare for us today? कविता / Poem – धरती के इस हिस्से में | Dharti Ke Is Hisse Mein कवि / Poet – राजेश जोशी | Rajesh Joshi पुस्तक / Book - Kavi Ne Kaha (Poems in Hindi) by Rajesh Joshi (Pg. 79) संस्करण / Publisher - किताबघर प्रकाशन (2012)
…
continue reading
16 حلقات